
एशिया का माहौल इन दिनों बेहद तनावपूर्ण होता जा रहा है। ताइवान मुद्दे को लेकर चीन और जापान के बीच बढ़ती तकरार अब सैन्य टकराव की देहरी तक पहुँच गई है। जापानी प्रधानमंत्री द्वारा ताइवान पर सैन्य कार्रवाई पर विचार करने वाले बयान ने बीजिंग को भड़काया, और इसके बाद दोनों देशों के बीच जुबानी जंग तेज़ हो गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि एशिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच एक भी गलत कदम वैश्विक संकट को जन्म दे सकता है — जिसकी परिणति तीसरे विश्व युद्ध जैसी भयावह स्थिति में हो सकती है।
उप्साला विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अशोक स्वैन ने चेतावनी देते हुए कहा कि भले ही सीधी जंग की संभावना कम हो, लेकिन परिस्थितियाँ अनियंत्रित हो जाएँ, यह बिल्कुल संभव है। उनके अनुसार चीन और जापान वर्तमान में जिस तनावपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं, वह पूरे एशिया–प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा के लिए खतरा बन रहा है।
ताइवान पर दोनों देशों की सख्ती
सैन्य विश्लेषकों के अनुसार जापान पिछले कुछ वर्षों से अपनी रक्षा क्षमता को तेज़ी से बढ़ा रहा है—ऐसा प्रयास उसने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद नहीं किया था। दूसरी ओर चीन पहले से ही अपनी सैन्य ताकत में भारी निवेश कर रहा है और ताइवान को लेकर लगातार आक्रामक रुख अपनाए हुए है।
तीन कारण जो चीन–जापान को युद्ध के मुहाने पर ला सकते हैं
1. फाइटर जेट या जंगी जहाज़ों की भिड़ंत
प्रोफेसर स्वैन बताते हैं कि हवा या समुद्र में लड़ाकू विमानों और जहाज़ों की टक्कर से दोनों देशों के बीच तुरंत सैन्य गतिविधियाँ बढ़ सकती हैं। ऐसी परिस्थितियों में अक्सर गोलीबारी नेताओं तक सूचना पहुँचने से पहले ही शुरू हो जाती है।
2. गलतफहमी या दुर्घटना
किसी फाइटर पायलट के गलत मार्ग में घुस जाने जैसे छोटे से हादसे से भी बड़ा विवाद खड़ा हो सकता है। इतिहास इसका उदाहरण है—1937 का ‘मार्को पोलो ब्रिज हादसा’ इसी तरह के तनाव से शुरू हुआ और दूसरा चीन-जापान युद्ध भड़क गया।
3. ताइवान के पास जापान का हथियार तैनात करना
चीन की सबसे सख्त ‘रेड लाइन’। यदि जापान ताइवान की ज़मीन या उसके नज़दीक मिसाइल जैसे हथियार तैनात करता है, तो चीन तुरंत सैन्य कार्रवाई कर सकता है। यह कदम सीधे–सीधे दोनों देशों को जंग की ओर धकेल सकता है।
क्या क्षेत्रीय संघर्ष से भड़क सकता है तीसरा विश्व युद्ध?
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि लड़ाई शुरू होती है तो यह केवल चीन और जापान तक सीमित नहीं रहेगी।
अमेरिका की एंट्री तय
जापान–अमेरिका सुरक्षा संधि के तहत वॉशिंगटन को टोक्यो की रक्षा करनी होगी। अमेरिका के बड़े सैन्य ठिकाने जापान में मौजूद हैं, इसलिए उसका शामिल होना लगभग निश्चित माना जा रहा है।
रूस, ईरान और उत्तर कोरिया का समर्थन
रूस और चीन भले NATO जैसा औपचारिक सैन्य समझौता न रखते हों, पर दोनों के बीच गहरा रणनीतिक तालमेल है। विशेषज्ञों का मानना है कि रूस चीन का साथ देगा—और यूरोप में खुद भी आक्रामक कदम उठा सकता है। ईरान और उत्तर कोरिया भी चीन–रूस धड़े को समर्थन दे सकते हैं।
ऐसे में यह संघर्ष एक क्षेत्रीय लड़ाई न रहकर वैश्विक युद्ध में तब्दील हो सकता है।