
असम की हिमंत बिस्व सरमा सरकार ने राज्य विधानसभा में नेल्ली नरसंहार से जुड़ी दो अहम जांच रिपोर्टों को सार्वजनिक कर राजनीतिक हलचल तेज कर दी है। 1983 के विधानसभा चुनावों के दौरान हुए इस भयावह नरसंहार में सरकारी आंकड़ों के अनुसार 1,800 लोग मारे गए थे, जबकि गैर-सरकारी रिपोर्टों में यह संख्या 3,000 तक बताई गई। मरने वालों में अधिकांश बंगाली भाषी मुसलमान थे।
सरकार द्वारा पेश की गई टी.पी. तिवारी आयोग और जस्टिस टी.यू. मेहता आयोग की रिपोर्टों के निष्कर्ष एक-दूसरे के विपरीत हैं। तिवारी आयोग ने जहां तत्कालीन कांग्रेस सरकार और चुनाव कराने के फैसले को जिम्मेदार नहीं माना, वहीं मेहता आयोग ने सीधे तौर पर इंदिरा गांधी सरकार के चुनाव कराने के निर्णय को नरसंहार की वजह बताया।
आंदोलन, तनाव और चुनाव का फैसला
1979 से 1985 के बीच असम में बांग्लादेशी घुसपैठ को लेकर बड़ा आंदोलन चला। असमिया संगठनों—AASU और AAGSP—के नेतृत्व में राज्य उग्र विरोध की आग में झुलस रहा था। इसी बीच 1982 में राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद भी कांग्रेस सरकार ने संवैधानिक मजबूरी का हवाला देते हुए चुनाव कराने की सिफारिश की, जिसे निर्वाचन आयोग ने मंजूरी दी।
फरवरी 1983 में चुनाव के दौरान तनाव चरम पर पहुंच गया और नेल्ली क्षेत्र में हिंसा भड़क उठी, जिसमें हजारों लोग मारे गए।
दो रिपोर्टें, दो निष्कर्ष
हिंसा की जांच के लिए दो आयोग बने—
✅ सरकारी तिवारी आयोग (1984)
✅ न्यायिक मेहता आयोग (1984)
दोनों रिपोर्टें तत्कालीन कांग्रेस सरकार को सौंप दी गईं, लेकिन कभी सार्वजनिक नहीं हुईं। 40 वर्षों तक दबे रहने के बाद अब इन्हें असम विधानसभा में पेश किया गया है।
तिवारी आयोग का निष्कर्ष
तिवारी आयोग ने कहा—
- चुनाव कराने के फैसले को हिंसा का कारण नहीं ठहराया जा सकता
- विदेशी और भाषा विवाद पहले से ही असम में तनाव का कारण थे
- AASU और AAGSP आंदोलनकारियों द्वारा सुनियोजित तरीके से दंगे, आगजनी और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया
- उद्देश्य चुनाव रुकवाना था
मेहता आयोग के आरोप
जस्टिस मेहता आयोग ने इसके उलट निष्कर्ष निकाला—
- चुनाव कराने का निर्णय ही हिंसा का मुख्य कारण था
- केंद्र और राज्य सरकारों को पता था कि माहौल अनुकूल नहीं है
- कांग्रेस ने चुनाव बहिष्कार का राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश की
- प्रशासन पूरी तरह तैयार नहीं था
मेहता आयोग ने बांग्लादेशी घुसपैठ और जमीन कब्जे के मुद्दे को असमिया समाज के लिए मूल समस्या बताया।
राजनीतिक तूफान
दोनों रिपोर्टों के सार्वजनिक होने के बाद असम की राजनीति गरमा गई है। बीजेपी इन रिपोर्टों को कांग्रेस शासन की “गलत नीतियों” का प्रमाण बता रही है, वहीं कांग्रेस इसे राजनीतिक साज़िश करार दे रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि रिपोर्टों का खुलासा 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले बांग्लादेशी घुसपैठ और पहचान राजनीति को बड़ा चुनावी मुद्दा बना सकता है।
नेल्ली नरसंहार असम के इतिहास का सबसे काला अध्याय माना जाता है। अब सवाल यह है कि—
3,000 मौतों का असली गुनाहगार कौन?
और क्या 42 साल बाद न्याय मिल पाएगा?