
प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रयागराज की एक निचली अदालत को 20 साल पुराने आपरcriminal मामले में ढीले रवैये के लिए सख्त शब्दों में चेताया है। अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने न केवल उच्च न्यायालय के निर्देशों की अनदेखी की, बल्कि अभियोजन पक्ष की लगातार लापरवाही के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाया, जिससे 73 वर्षीय आरोपी श्रीश कुमार मालवीय को अनावश्यक रूप से मानसिक और कानूनी उत्पीड़न सहना पड़ा।
जस्टिस विवेक कुमार सिंह ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि “कहीं न कहीं कुछ तो गड़बड़ दिखती है”। अदालत ने यह भी कहा कि इतने पुराने मामलों को निपटाना ट्रायल कोर्ट की जिम्मेदारी है, लेकिन अदालत मूकदर्शक बनी रही और अभियोजन पक्ष लगातार स्थगन मांगता रहा।
13 साल से एक भी गवाह नहीं
मामला वर्ष 2005 से लंबित है, जिसमें अधिकतम छह माह की सजा का प्रावधान है। आरोपपत्र 2005 में दाखिल हुआ, लेकिन आरोप तय होने में सात साल लग गए और यह प्रक्रिया 2012 में पूरी हुई। इसके बाद भी ट्रायल कोर्ट 13 वर्षों तक एक भी गवाह पेश कर पाने में असफल रहा।
हैरानी की बात यह रही कि गवाहों के खिलाफ गैर-जमानती वारंट भी 11 साल बाद दिसंबर 2023 में जारी हुए, जिनका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। इसके बावजूद अदालत ने अभियोजन को बार-बार तारीखें देती रहीं।
हाईकोर्ट का सख्त आदेश
हाईकोर्ट ने पीड़ित आरोपी को राहत देते हुए निर्देश दिया कि ट्रायल कोर्ट एक महीने के भीतर मामले की सुनवाई पूरी करे। अदालत ने चेतावनी दी कि यदि अगली तिथि पर अभियोजन साक्ष्य प्रस्तुत नहीं करता, तो उसका अवसर समाप्त माना जाएगा। साथ ही निचली अदालत को एक महीने बाद रिपोर्ट उच्च न्यायालय को भेजनी होगी।
न्यायपालिका की जवाबदेही पर जोर
हाईकोर्ट ने कहा कि जैसे राज्य के अन्य सभी अंग जनता के प्रति जवाबदेह हैं, वैसे ही न्यायपालिका भी आम आदमी के प्रति जवाबदेह है। इसलिए ट्रायल कोर्ट के पीठासीन अधिकारी को यह समझना होगा कि पुराने मामलों का निपटान प्राथमिकता के साथ होना चाहिए।
अदालत ने पुराने मामलों में बिना वजह स्थगन देने और उच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों व परिपत्रों की अनदेखी करने पर ट्रायल कोर्ट की कड़ी आलोचना की।
हाईकोर्ट की इस टिप्पणी और आदेश से निचली अदालतों के कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं, साथ ही न्याय प्रक्रिया के तेजी से निस्तारण की आवश्यकता एक बार फिर प्रमुखता से सामने आई है।