
पटना। बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में दसवीं बार शपथ लेने वाले नीतीश कुमार के पास राजनीति का लंबा अनुभव तो है ही, साथ ही राज्य की जमीनी समस्याओं की गहरी समझ भी है। लेकिन अब असली परीक्षा सिर्फ पहचान की नहीं, बल्कि उन कमियों को दूर करने की है, जिनकी वजह से बिहार शेष देश के मुकाबले पिछड़ता रहा है। सवाल यह है कि आने वाले कार्यकाल में नीतीश इन चुनौतियों से कैसे निपटेंगे।
आंकड़ों में नहीं, गुणवत्ता में पिछड़ रही अर्थव्यवस्था
बिहार का सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) कई बार बेहतर वृद्धि दर दर्ज करता है, लेकिन यह विकास सतही माना जाता है।
- राज्य की प्रति व्यक्ति आय आज भी राष्ट्रीय औसत की करीब एक-तिहाई
- तीन-चौथाई परिवार खेती पर निर्भर, लेकिन कृषि सिर्फ कुल उत्पादन का एक-चौथाई
- सर्विस सेक्टर बड़ा, पर कम आय वाले कामों में सीमित
- मैन्युफैक्चरिंग अब भी कमजोर
इसी असंतुलन ने बिहार की अर्थव्यवस्था को धीमी और सीमित बना रखा है।
कल्याणकारी वादों के बीच वित्तीय दबाव
विशेषज्ञ मानते हैं कि नकद हस्तांतरण और त्वरित राहत योजनाएं राजनीतिक रूप से आसान विकल्प हैं, लेकिन आर्थिक रूप से जोखिम भरे।
- राज्य की 74% आय केंद्र से मिलने वाले फंड पर निर्भर
- कुल आमदनी का 42% वेतन, पेंशन और ब्याज में ही खर्च
ऐसे में बड़ी रियायतें देने पर विकास परियोजनाओं के लिए बजट और सिकुड़ जाता है।
बार-बार महिलाओं को 10 हजार रुपये देने जैसे वादे चुनावी लाभ तो दिला सकते हैं, लेकिन इन्हें हर साल बजट में सुनिश्चित करना पड़ता है—वह भी बिना स्कूल, नौकरियां, बिजली और कौशल विकास जैसे क्षेत्र प्रभावित किए।
विज्ञान आधारित विकास मॉडल की जरूरत
विशेषज्ञों का मानना है कि बिहार को अब नई सोच अपनानी होगी—
- कृषि को आधुनिक तकनीक से जोड़ना
- एग्रो-इंडस्ट्री क्लस्टर विकसित करना
- मखाना जैसे उत्पादों को वैल्यू-एडिशन और निर्यात से जोड़ना
- कानून-व्यवस्था मजबूत कर निजी निवेश आकर्षित करना
- शासन को डिजिटाइज कर भ्रष्टाचार पर रोक
- प्रवासी मजदूरों की आमदनी को स्थानीय उद्यमों में बदलना
- कौशल विकास और शहरी–औद्योगिक ढांचे का विस्तार
युवाओं की बड़ी आबादी को अवसरों में बदलना ही भविष्य की असली कुंजी होगी।
अब असली परीक्षा: शॉर्टकट से दूर, दीर्घकालिक रणनीति की ओर
नीतीश कुमार के पास अनुभव, अधिकार और स्थिर नेतृत्व—तीनों हैं। अब देखना यह है कि क्या वह बिहार को तात्कालिक उपायों वाली राजनीति से निकालकर क्रियान्वयन-आधारित, दीर्घकालिक विकास मॉडल की दिशा में ले जा पाते हैं।
आने वाले वर्ष तय करेंगे कि बिहार शेष भारत की प्रगति के साथ कदम मिला पाता है या एक बार फिर अवसरों को खो देता है।