Saturday, December 6

मसूरी की पहाड़ियों में गूंजती रही इंदिरा गांधी की बुलंद आवाज, 1982 की जीत आज भी याद की जाती है

देहरादून: देश की लौह महिला और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मसूरी में अपने पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ कई ऐतिहासिक और सुनहरे पल बिताए। तिब्बती समुदाय की मदद करने और 1982 में खनन पर रोक लगाकर मसूरी की पहाड़ियों को विनाश से बचाने के उनके प्रयास आज भी शहरवासियों की यादों में ताजा हैं।

बचपन से ही राजनीति की समझ

1920 के दशक में नेहरू परिवार मसूरी आया करता था। स्वतंत्रता संग्राम के बीच जेल यात्राओं के बावजूद पंडित नेहरू ने नन्हीं इंदिरा को पत्रों के माध्यम से राजनीतिक समझ, दूरदर्शिता और दृढ़ता का पाठ पढ़ाया। यही समय था जब इंदिरा गांधी ने एक संवेदनशील और मजबूत नेतृत्व की पहचान बनाई।

तिब्बती शरणार्थियों के लिए संवेदनशीलता

1958 में इंदिरा गांधी ने तिब्बती होम्स फाउंडेशन से मुलाकात की। 1963 में उन्होंने इसकी पहली गवर्निंग बॉडी की बैठक में भाग लिया और बच्चों की शिक्षा, विशेषकर हैप्पी वैली स्कूल की प्रगति में रुचि दिखाई।

प्रधानमंत्री के रूप में भव्य स्वागत

1974 में प्रधानमंत्री रहते हुए उनका भव्य स्वागत हुआ। उन्होंने प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थान का नाम लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी रखने का ऐतिहासिक निर्णय लिया। हैप्पी वैली मैदान में उनका सार्वजनिक संबोधन आज भी बुजुर्गों की यादों में जीवंत है।

1982: पहाड़ियों को विनाश से बचाया

इंदिरा गांधी का अंतिम दौरा 1982 में हुआ। उस समय हाथीपांव क्षेत्र में चल रही चूना-पत्थर खदानें मसूरी की प्राकृतिक सुंदरता को नष्ट कर रही थीं। उन्होंने तत्काल कार्रवाई करते हुए खनन रोकने के लिए सरकार को निर्देश दिए। सुप्रीम कोर्ट ने उनके निर्देशानुसार खदानें बंद कर दीं। स्थानीय लोगों के अनुसार, अगर इंदिरा गांधी न होतीं, तो मसूरी की हरियाली हमेशा के लिए खतरे में पड़ गई होती।

इतिहासकार की प्रतिक्रिया

इतिहासकार गोपाल भारद्वाज का कहना है कि इंदिरा गांधी की यात्राओं ने मसूरी की पहचान, संस्कृति और पर्यावरण पर गहरा प्रभाव छोड़ा। उन्होंने स्थानीय समस्याओं को समझा और सबसे महत्वपूर्ण पहाड़ों को विनाश से बचाया। यही कारण है कि मसूरी के लोग आज भी गर्व के साथ कहते हैं कि यह शहर इंदिरा गांधी का हमेशा ऋणी रहेगा

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